ऐ___काश___कि___ऐसा___होता_____



ना दिवाली होती, और ना पठाखे बजते,,
        ना ईद की अलामत, ना बकरे कटते...

तू भी इन्सान होता, हम भी इन्सान होते,,
…….काश कोई धर्म ना होता....
…….काश कोई मजहब ना होता....

ना अर्ध देते, ना स्नान होता,,
      ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता...

जब भी प्यास लगती, नदीओं का पानी पीते,,
पेड़ों की छाव होती, नदीओं का गर्जन होता...

ना भगवानों की लीला होती,ना अवतारों का नाटक होता,
   ना देशों की सीमा होती, ना दिलों का फाटक होता...

ना कोई झूठा काजी होता, ना लफंगा पंडित होता,,
   इंसानियत के दरबार में, सबका भला होता...

तू भी इन्सान होता, हम भी इन्सान होते,,
…….काश कोई धर्म ना होता.....
…….काश कोई मजहब ना होता....

कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता,,
      कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना होता...

कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता,,
          किसी के दर्द से कोई बेखबर ना होता...

ना ही गीता होती, और ना कोई कुरान होता,,
   ना ही अल्लाह होता, ना भगवान होता...

तुझको जो जख्म होता, हमारा दिल तड़पता,,
       ना हम हिन्दू होते, ना तू भी मुसलमान होता...

#तू_भी_इन्सान_होता_हम_भी_इन्सान_होते____🙏😊

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