खुदकुशी की ख़बर

 आज हर रोज़ खुदकुशी की ख़बर

आती है,

तो सोचता हूँ कि लोग किससे इतना भाग रहे हैं?

आखिर कौन था या क्या हुआ था ऐसा!

जो वो ज़ीने की सारी हिम्मत वो हार रहें हैं?

इतनी मुश्किल भी क्या थी उनकी,

जो हर चीज़ से लड़ना छोड़ दिया।

क्यों ज़िन्दगी से इतना डर गए वोह,

कि मौत से भी डरना छोड़ दिया।।


तभी एक चेहरा सामने आता है,

जो थोड़ा सा बूढा हो चुका है।

काफी ज्यादा झुर्रियों से भरा हुआ है,

बालों का रंग भी वो खो चुका है।

शायद अब आँखों से साफ दिखाई नही देता,

कानों से भी उतना अच्छा सुनाई नही देता।

उम्र के आगे कंधे भी थोड़ा सा झुक से गए हैं,

पैरों का भी वही फुर्तीलापन दिखाई नही देता।।


शरीर के इतना कमजोर होने के बाद भी,

वो इंसान ज़िन्दगी से हर रोज़ नई जंग लड़ रहा है।

आराम करने का उसका भी मन करता होगा,

पर फिर भी धीमी चालों से हर रोज़ आगे बढ़ रहा है।

उसने भी तो कितने अपमान सहे हैं,

कितने अपनो को उसने खोया है।

कई बार बड़ी-बड़ी ठोकरें खाई होंगी,

शुरुवाती रातों में वो भी भूखे पेट सोया है।।


उस आँख में अभी भी एक उम्मीद झलकती है,

चिल्लाकर कहती है-" बहुत रो लिया, उठो! अब आगे बढ़ो।"

हर तकलीफ से लड़ने की आग सी धधकती है,

फुसफुसाकर कहती है- "हार गए तो क्या!,एक बार और लड़ो।"

हर मुसीबत आयेगी और चली जाएगी,

पर उसके विश्वास को कोई न हिला पायेगा।

उस पिता के धूप में जले चेहरे जितनी,

हिम्मत कोई भी न दिला पायेगा।।

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